। शहरकाअजीबसा मंजर।
आज शहर में मैं तो घूम रहा था।
अजीब सा मंजर देख रहा था।
उजडा उजड़ा शहर लगा है।
जाने कौन सा कहर लगा है।
अतिक्रमण तो हटा या गया ।
हरकोई तो बेसहारा हो गया
सब कुछ तो सारा टूट गया ।
मानो सब कुछ बिखर गया ।
शहर खामोश नजर आ रहा था।
पर बहुत कुछ वो तो कह रहा था।
वह बेरोजगारी को बता रहा था।
टूटे दिलों के हाल सुन रहा था।
काम ना कसे कहीं नौकरी थी।
पढ़े लिखे होकर भी बेकरी थी।
उन्हें तो जिंदगी गुजारने के लिए।
कुछ करना था परिवार के लिए।
परिवार की जवाबदारी थी।
छोटी उनकी दुकानदारी थी।
वही उनकी रोजी-रोटी थी।
वही उनकी दुनियादारी तो थी।
सुबह से हि काम था जिन्हें।
आज कोई काम नहीं है उन्हें।
फिर से वो बेरोजगार हुए हैं।
काम नहीं तो हताश हुए हैं।
उजड़ा उजड़ा सा शहर लगा
जाने कौन सा ये कहर लगा ।
आज मैं शहर में घूम रहा था।
अजीब सा मंजर देख रहा था
संभाजीराव अशोकराव टाले
पत्रकार ७२६२९४४५५१
राष्ट्रवादी काँग्रेस शरदचंद्र पवार जिल्हा संघटक

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